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24 Dec 2018

पुर्णत्वं स्वात्म सिद्धि साधना

बहोत सारे लोग कहेते है के उनके जीवन मे ढेर सारी समस्याएं है और उन समस्याओं का उन्हें खोजने पर भी कोई उपाय नही मिल रहा है । सबसे पहिली बात उपाय मिल भी जाये तो क्या कोई भी परेशान व्यक्ति उस उपाय पर विश्वास करेगा? जब तक आप लोग विश्वास नही करोगे तब तक उपाय से आपकी समस्याएं दूर नही हो सकती है । यहां आज के समय मे सभी लोग बिना मेहनत के फल चाहते है और दिन-रात गूगल फेसबुक व्हाट्सएप यु-ट्यूब पर तांत्रिकों को ढूंढते रहेते है,इस उम्मीद से के कोई उनका काम करवा दे ।  लाचार के तरहा जीवन जीने से कुछ भी संभव नही है,स्वयं की पहेचान ही सर्वप्रथम होती है,आप लोग अपने जीवन को 100% सवार सकते हो सिर्फ आपको प्रमाणिकता से तंत्र-मंत्र के क्षेत्र में मेहनत करना है ।

प्रत्येक मंत्र शक्तिशाली होता है,मंत्रो को कभी भी छोटा ना समझे,तंत्र की शक्ति कोई साधारण शक्ति नही होती है,जिसने इन शक्तियों को समझ लिया वह जीवन मे सवर जाता है । कोई भी मंत्र जब भी प्राप्त करो तो उस मंत्र के प्रति प्रामाणिक रहो और उस मंत्र पर इतना विश्वास रखो के वह एक मंत्र आपको सिद्ध हो सके । चाहे आप कोई भी साधना करो परंतु साधना काल मे मंत्र का स्मरण ज्यादा-से-ज्यादा करो, जैसे आपको कोई मंत्र साधना 21 माला जाप 21 दिनों तक करना हो तो आप निच्छित समय पर जाप करते रहो और साथ मे उसी मंत्र का जाप दिन-रात जब भी समय मिले तो मन ही मन मंत्र जाप या स्मरण करते रहे । ऐसा करने से ही मंत्र सिद्धि संभव है अन्यथा 21 दिन के साधना में आपको 210 दिन भी मंत्र सिद्धि हेतु कम पड़ जायेंगे । मैं आपको मंत्र दे सकता हु परंतु उसे सिध्द आपको ही करना है,आप हृदय से विश्वास करते है तो वह मंत्र आपके लिए संजीवनी है अन्यथा वह आपके लिए सिर्फ कुछ शब्द है ।

किसी भी मंत्र को आप पूजनीय समझे तो वही मंत्र आपको पूजनीय बना देगा,यही सिद्धांत रखे । आपको जीवन मे परेशानी से मुक्त होना है तो 4-5 दिन स्मशान में जाकर बैठकर देखिए,जलते हुए मुर्दो को देखकर आप समझ जाओगे,जब समय समाप्त होता है तो सब कुछ समाप्त हो जाता है,इसलिए आज आपके पास समय है तो उसे व्यर्थ की परेशानियों से दूर कराने से अच्छा तो आनेवाली परेशानियों को मुक्त कराने हेतु इस्तेमाल करे । जो आपका है वह आपको ही मिलेगा इसके लिए भी प्रयास करना जीवन मे एक अनुभव उत्पन्न करेगा । अब नववर्ष आरहा है,उसका स्वागत करे और संकल्प लीजिए के " मै अमुक पिता का पुत्र अमुक नाम का व्यक्ति आजसे जीवन मे अपनी समस्याओं पर पैर रखकर खड़ा होना चाहता हु और इसमे मेरे गुरु/इष्ट/अमुक देवी/देवता मेरा संकल्प पूर्ण करने हेतु आशीर्वाद प्रदान करे" , यह संकल्प और शक्तियो से सम्बंधित मंत्र का जाप आपको जीवन मे सब कुछ प्रदान कर सकता है ।

आपके जीवन की समस्याओं को आप स्वयं दूर करे,किसी के सामने आपको जाकर सहायता मांगने की कोई जरूरत ही नही है । यह तो तब संभव होगा जब आप इस भावना को अपने अंदर जाग्रत करेंगे,देवता सिर्फ साधु सन्यासी तांत्रिक मंत्रिको के लिए नही है,वह तो सभी पर कृपा करते है । आप सभी दैवीय शक्ति के अंश हो,अगर ये बात आप समझ जाओ तो आपको इस जीवन मे कोई भी परेशानी छू भी नही सकती है । आपके जेब मे पैसा हो ना हो परंतु शरीर मे प्राणवायु होना जरूरी है अगर प्राणवायु ही ना हो तो करोड़ो रूपये भी आपको जीवनदान नही दे सकता है इसलिए दैवीय शक्ति को अनुभव करने हेतु अच्छे मार्ग पर चले और बकवास तांत्रिक मंत्रिको के चक्कर काटने से अच्छा है के स्वयं मंत्र साधना संपन्न करे, आशा करता हु के आपको मेरे शब्दों को समझने में कोई तकलीफ नहीं हुई होगी ।

आज एक अनुभवी मंत्र साधना दे रहा हु जिससे आपके जीवन का नवीनीकरण होना संभव है,जो भी जीवन मे परेशानी हो वह समाप्त हो सकती है ।

साधना विधि-स्फटिक माला से नित्य मंत्र का 11 माला जाप करे,मुख उत्तर दिशा के तरफ होना चाहिए, आसन और वस्त्र पिले रंग के हो,मंत्र जाप सुबह 5-6 बजे के समय मे या रात ने 9-10 बजे तक के समय मे करे,साधना किसी भी सोमवार से शुरू करे,यह साधना 21 दिनों तक करना अनिवार्य है ।

।। ॐ ह्रीं त्रीं पूर्णत्वं स्वात्म सिद्धये ॐ नमः ।।
Om hreem treem purnatwam swaatm siddhaye om namah

साधना समाप्ति के 21 वे दिन किसी गरीब को कुछ आवश्यक वस्तु अवश्य दान करे । यह साधना सूर्यग्रहण के समय मे 21 माला करने से उसी दिन पूर्ण हो जाएगी । साधनात्मक अनुभव किसीको ना बताये,इससे आपको जीवन मे चमत्कारीक लाभ प्राप्त हो सकते है ।

सूर्यग्रहण समय

इस वर्ष 2019 का पहला सूर्य ग्रहण 6 जनवरी को है, इस दिन रविवार पड़ रहा है । यह एक आंशिक सूर्य ग्रहण है,यह सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार सुबह 5:04 बजे से 9:18 बजे तक रहेगा अर्थात इसकी अवधि क़रीब 4 घंटे 14 मिनट है । साथ ही यह भी बता दें कि देखने पर यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा परंतु मध्य-पूर्वी चीन, जापान, उत्तरी-दक्षिणी कोरिया आदि क्षेत्रों में यह ग्रहण नजर आएगा ।

ज्योतिषीय के अनुसार सूर्य ग्रहण धनु राशि और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में लग रहा है । इस कारण धनु राशि और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के जातकों के जीवन पर इसका प्रभाव होगा । इसलिए धनु राशि और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के जातकों को सावधानियां बरतनी होगी ।

आदेश.........

18 Nov 2018

गुरु गोरखनाथ कृपा प्राप्ति साधना



एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’। पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया। गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?

तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये। आश्रम में एक सेठ ने मुझे संत को कुछ पैसे देकर खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’।

तोते ने गुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं, जिससे मेरा बंधन छूट जाए। गुरु बोले- आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं। रानी समझेगी मर गया और छोड़ देगी। ऐसा ही हुआ। दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला, तब संत ने आराम की सांस ली। रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पढ़ा है, शायद मर गया। रानी ने पिंजरा खोल दिया, तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे’। अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो, लेकिन सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता।

अब सच्चे गुरु कहा ढूंढेगे,जो भी मिले इस जमाने मे वो तो शिष्यों की किस्मत ही है,मैं पहिले से समझा रहा हु "गुरु गोरख ही गुरु बने,बनाया कौन बाबा मच्छीन्द्रनाथ,आज्ञा संजीवन की गोरख माने चले"।

इस श्लोक में स्वयं बाबा मच्छीन्द्रनाथ जी ने गोरखनाथ जी को आज्ञा दे दी थी के गोरख तुम सब के गुरु बनो और कभी शरीर का त्याग ना करो,हमेशा संजीवनी के तरह संजीवन रहो । इस कलयुग में गोरखनाथ, चर्पटीनाथ ,चौरंगीनाथ....आज भी बिना देह त्याग किये हुए वायुमंडल में अपनी समाधी में शिष्यों के कल्याण हेतु चैतन्य रूप में है । इसलिए गुरु गोरखनाथ जी को अपना गुरु माने और पिछले पोस्ट में जो गोरख गुरु मंत्र दिया था उसका जाप प्रारंभ करे । यह मंत्र 13 जनवरी 2016 को दिया था और सर्वप्रथम मैने ही यह मंत्र पोस्ट किया था परंतु चोरो ने उस आर्टिकल को जैसे के वैसा बोलकर अपने नामो से यूट्यूब पर डाला हुआ है,उस आर्टिकल का लिंक दे रहा हु-

https://ssd-sadhnaye.blogspot.com/search/label/Gorakhanath%20Guru%20Mantra.?m=0

इस लिंक को कॉप्पी करे और गूगल पर पेस्ट करके पढ़ सकते हो ।

21 नवम्बर को बाबा गोरखनाथ जी की जयंती है तो इस अवसर को आप कुछ महत्वपूर्ण बनाये इसलिए आज आपके सामने गुरु गोरखनाथ जी का एक मंत्र स्पष्ट कर रहा हु जो गोपनीय है । श्रावण माह में यह मंत्र मुझे उज्जैन में रामनाथ बाबाजी से प्राप्त हुआ था । अभी कुछ समय पहिले उनसे बात हुई और उन्होंने मुझे इस मंत्र को जनहित में साधकों को देने हेतु प्रेरित किया ।


ॐ नमो आदेश गुरु मच्छीन्द्रनाथ जी को,नमो आदेश धरतरी माई को,नमो आदेश गजानन गणपति को,नमो आदेश महादेव को,नमो आदेश आदिगुरु को,शम्भुजति को गुरु मच्छीन्द्रनाथ ने हाँक लागाई,हाँक सुनते प्रगट हुए,पहिला शब्द आदेश बोला,अपना शीश गुरु चरणो में झुकाया,दीक्षा के साथ सोहं मंत्र प्राप्त किया,तीनो लोको में विजय प्राप्त किया,गुरु आज्ञा से गुरु गोरखनाथ बने,मेरा कारज पूरण करो अपना शिष्य बनाओ,इतना मंत्र उज्जयिनी में सिद्धो को सुनाया,गोरख कृपा मंत्र सम्पूर्ण भया,श्री नाथजी गुरुजी को आदेश आदेश आदेश ।।


मंत्र का विधि-विधान:-
गुरु गोरखनाथ जयंती के पावन अवसर पर किसी भी समय शरीर शुद्ध करके मंत्र जाप हेतू किसी भी रंग के आसन पर बैठे और मंत्र जाप हेतू पूजास्थल में बैठे । मंत्र का 108 बार जाप रुद्राक्ष माला से करना है मतलब 1 माला जाप कम से कम करना आवश्यक है । जाप के बाद गुरु गोरखनाथ जी से साधना सफलता हेतु प्रार्थना करे और एक नारियल भगवान के सामने फोड़ दीजिये,नारियल का प्रसाद घर में सबको देना है । पहले दिन के विधान के बाद रोज 1 माला जाप 41 दिनों तक करते रहे,गोरखनाथ जी की कृपा आप पर बनी रहेगी ।


आदेश.....

23 Oct 2018

वशीकरण प्रयोग (वीर वैताल साधना).



वीरों के विषय में सर्वप्रथम पृथ्वीराज रासो में उल्लेख है वहां इनकी संख्या 52 बताई गई है। इन्हें भैरवी के अनुयायी या भैरव का गण कहा गया है। इन्हें देव और धर्मरक्षक भी कहा गया है। वीर वैताल एक ऐसी साधना है जो साधक को सभी रूप से बलशाली बनाती है। वेताल का साधक कभी किसी चीज से वंचित नहीं रहता है। आज आपको वीर वैताल वशीकरण साधना दिया जा रहा है जो अचूक है,इसका प्रभाव साधक को कुछ ही दिनों में देखने मिलता है ।

वास्तव में वैताल साधना अत्यन्त सौम्य और सरल साधना है, जो भगवान शिव की साधना करता है वह वैताल साधना भी सम्पन्न कर सकता है। जिस प्रकार से भगवान शिव का सौम्य स्वरूप है, उसी प्रकार से वैताल का भी आकर्षक और सौम्य स्वरूप है। इस साधना को पुरुष या स्त्री सभी सम्पन्न कर सकते हैं। यद्यपि यह शाबर वशीकरण साधना है, परन्तु इसमें किसी प्रकार का दोष या वर्जना नहीं है। गायत्री उपासक या देव उपासक, किसी भी वर्ण का कोई भी व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न कर अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह है, कि इस साधना में भयभीत होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है, घर में बैठकर के भी यह साधनात्मक क्रिया सम्पन्न की जा सकती है।

आज के समय मे वशीकरण एक महत्वपूर्ण क्रिया है,इस क्रिया के माध्यम से तनाव को नष्ठ कर आप जिससे प्रेम करते हो उसे पुनः प्राप्त कर सकते हो,मुझे पूर्ण विश्वास है इस साधना से आप अपने मनपसंद व्यक्ति को जीवन मे प्राप्त कर सकते हो । किसी भी व्यक्ति को धोखा देने हेतु यह साधना ना करे अन्यथा आपको नुकसान होने की संभावना बन जाएगी । आप सच्चा प्रेम करते हो तो आपको आपके प्रेम को प्राप्त करने हेतु इससे अच्छा साधना मिलना कठिन है,आप इस साधना को अवश्य आजमाए तो अवश्य ही सफलता मिलेगा ।



साधना सामग्री:-


एक छोटा काले रंग का मिट्टी का मटका,50 ग्राम काले उड़द,एक हल्दी की गाँठ, ग्यारह काली मिर्च के दाने,वशीकरण यंत्र ( जिसको वश करना है,उसीके नाम से बनाया हुआ हो ),काला कपड़ा और काला धागा ।



वशीकरण क्रिया:-


यह प्रयोग अमावस्या के रात्रि में 9 बजे के बाद कभी भी सम्पन्न करना है,सिर्फ एक ही दिन का साधना है । साधक को दक्षिण दिशा के तरफ मुख करके एकांत में बैठना जरूरी है । सामने मिट्टी का मटका रखे,उसमे काले उड़द डाले उसपर लड़का/लड़की का फोटो रखे अगर फ़ोटो ना हो तो लाल रंग के कागज पर काले पेन से लड़का/लड़की का नाम लिखकर रखे,उसके ऊपर वशीकरण यंत्र को हल्दी के गाँठ के साथ काले धागे से बांधकर रखे । अब मंत्र का एक-एक माला जाप करके एक-एक काली मिर्च का दाना मटके में डाले,इस प्रकार से ग्यारह माला जाप करते हुए ग्यारह काली मिर्च के दानों को मटके में डाले । मंत्र जाप समाप्त होते ही काले कपड़े से मटके का मुँह बंद करे और कपड़े को अच्छेसे काले धागे से बांध दे । इस मटके को दूसरे दिन ठीक 11.30 से 12.30 के समय दोपहर में जाकर जंगल मे कही पर भी आधा फिट जमीन के अंदर गाड़ दे,गाड़ने के बाद उस स्थान के ऊपर दो अगरबत्ती जलाकर रखे और कुछ कपूर की टिकिया प्रज्वलित करे, कपूर के अग्नि के लौ को देखते हुए 21 बार मंत्र का जाप कर ले और "कार्य शीघ्र पुर्ण हो" ऐसी प्रार्थना करे । अब बिना पीछे मुड़कर देखते हुए अपने घर वापस चले जाएं,वह स्थान याद रखना जरूरी है जहां आपने मटका गाड़ा था क्योके कार्य पूर्ण होने के बाद उसी जगह पर जाकर नारियल फोड़ना है और एक अनार का बली भी देना है ।



मंत्र:-


।। ॐ नमो वीर वैताल, अमुक को मन फेर अमुक के वश में कर,चरणों मे पड़े,कहियो करे,सौ ताले तोड़ हाजर होय,कहु सो होय,***** ।।



कुछ शब्द आखरी में गोपनीय रखे है ताकि बिना मार्गदर्शन के आप साधना ना कर सको क्योंके इसमे आपको मेरे मार्गदर्शन का जरूरत पड़ेगा । इस प्रयोग से ग्यारह दिनों में कार्य पूर्ण होता है और वशीकरण का असर देखने मिलता है,यह एक दुर्लभ प्रामाणिक क्रिया है जिसका प्रभाव तिष्ण है ।

न्योच्छावर राशि "वशीकरण यंत्र:1250/-रुपये"



आदेश.....

20 Oct 2018

महालक्ष्मी-सर्व कामना पूर्ति साधना (अग्नि पुराण)



7 नवंबर 2018 को दीपावली मनाई जाएगी और यह एक मात्र ऐसा दिवस है जिस दिन भाग्य को बदला जा सकता है । अन्य दिवस पर आनेवाले सभी मुहूर्त दीपावली के मुहूर्त से शक्तिशाली नही होते है । चाहे वेद में पढ़े या तंत्र शास्त्र में पढ़े ऐसा दुर्लभ दिवस ही इंसान को सही रास्ता और जीवन मे गती प्रदान करता है । जीवन मे धन-धान्य की आवश्यकता ना हो ऐसा एक भी मनुष्य इस धरा पर देखने नहीं मिलेगा, सभी को धन-धान्य के साथ सुख-सुविधाओं की भी आवश्यकता है । सूख-सुविधाओं से प्राप्त जीवन सिर्फ आर्थिक स्थितियों को मजबूत करने से संभव है और सुख हमेशा प्राप्त होता रहे इसलिए देवताओं की कृपा भी आवश्यक है ।

सिर्फ हमारे देश मे ही नही अपितु कई सारे देशों में माँ महालक्ष्मी जी की पूजा अन्य रूपो में होती है,माँ के अलग-अलग नाम प्रचलित है । इस वर्ष दीपावली स्वाती नक्षत्र पर है और कहावत भी है कि जब स्वाति नक्षत्र में ओंस की बूँद सीप पर गिरती है तो मोती बनता है। दरअसल मोती नहीं बनता बल्कि ऐसा जातक मोती के समान चमकता है। यह कहावत पुराने जमाने से चलती आरही है और मैने स्वयं अनुभव किया जब स्वाति नक्षत्र पर बारिश होती है तो बारिश के पाणी को स्टील के बर्तन में जमा करता हु और उसे जमीन पर नही गिरने देता,अब इसी जल से जब किसी देवी/देवता के विग्रह का स्नान करता हू तो वह देवी/देवता का विग्रह पहिले से ज्यादा चैतन्य होता जाता है । जब भी स्वाति नक्षत्र के बारिश के पाणी से मंत्रो से युक्त विग्रह का अभिषेक किया जाता है तो विग्रह के साथ-साथ हमारा शरीर भी चैतन्य हो जाता है,किसी भी साधक का जब तक शरीर चैतन्य ना हो तब तक वह मंत्र सिद्धि समय से पूर्व नही कर पाता है । साधक के शरीर को चैतन्यता प्राप्त होने से वह समस्त मंत्र साधनाओ में शीघ्र सफलता प्राप्त कर लेता है ।

अमावस्या एक काली रात मानी जाती है और स्वाति नक्षत्र का स्वामी राहु है जो अधंकार का प्रतीक है,इस वर्ष यह दुर्लभ योग है जो तंत्र के हिसाब से देखा जाए तो शक्तिशाली दिवस है । माँ लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए शुक्र ग्रह की साधना संपन्न करते है और जब शुक्र-राहु का संबंध वृषभ से हो तो साधक अवश्य ही धन प्राप्ति साधनाओं में निच्छित सफलता प्राप्त करता ही है,इसलिए आप इस वर्ष सिंह लग्न से ज्यादा वृषभ लग्न के समय मे महालक्ष्मी जी के मंत्र का जाप ज्यादा-से-ज्यादा करे । मेरे शहर में इस वर्ष वृषभ लग्न समय 18:02 से 20:01 तक रहेगा और आप भी अपने शहर का दीपावली पूजन वृषभ लग्न समय गूगल पर सर्च करे तो पता कर सकते है ।

शुक्र-राहु के बल का उपयोग वृषभ लग्न में करे तो अवश्य ही सफलता मिलेगी और तुला राशि का चंद्रमा आपको आकस्मिक धन प्राप्ति में भी मदत करेगा । तुला राशि मे शुक्र उच्च का होता है इसलिए महालक्ष्मी जी के प्रसन्नता प्राप्ति हेतु यह दिवस कुछ विशेष बन जाता है,जिसका लाभ सभी साधक मित्रो को इस वर्ष उठाना चाहिए ।

इस वर्ष मैं आपको एक विशेष यंत्र के बारे में बताने वाला हु और यह यंत्र आपको स्वयं अपने घर पर ही बनाना है, यंत्र निर्माण करने हेतु आपको चाँदी/तांबे का ताबीज,भोजपत्र,चमेली की कलम और अष्टगंध के स्याही की आवश्यकता है । आप ताबीज,भोजपत्र और अष्टगंध किसी भी पंसारी के दुकान से 7 तारीख से पहिले ही खरीदे और चमेली की कलम मतलब कोई चमेली के पौधे की डंडी तोड़कर सूखा ले ओर इसीका प्रयोग यंत्र निर्माण में करना है, यह यंत्र सर्व साधना सिद्धि हेतु निर्माण करना है,जिससे आपको सभी मंत्र-तंत्र-शाबर-अघोरी साधनाओ में शीघ्र सफलता मीले । यह यंत्र बनाने में 10 मिनट से ज्यादा का समय नही लगेगा और इसी दिन वृषभ लग्न मुहूर्त में यह यंत्र निर्माण करके धारण करे और महालक्ष्मी सर्व कामना पूर्ति साधना सम्पन्न करे और जीवन मे होने वाले अनुभव को देखिए । महालक्ष्मी सर्व कामना पूर्ति मंत्र अग्नि पुराण में दिया हुआ है और यह मंत्र इसी ब्लॉग पर आप लोगो को 3-4 नवंबर को पढ़ने मिलेगा । इस मंत्र से समस्त प्रकार के कामनाओ के साथ-साथ महालक्ष्मी जी की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकते हो जिससे जीवन मे धन,धान्य, सुख,सुविधा, समृद्धि आपके जीवन मे प्राप्त होगी ।

दिए हुए शुभ समय पर मंत्र की 11,21..51 माला जाप अपने सुविधा नुसार करे,जाप के लिए कमलगट्टे की माला या स्फटिक माला का इस्तेमाल कर सकते हो ।

मंत्र:-


।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो महालक्ष्म्यै हरिप्रियायै स्वाहा ।।

Om hreem shreem kleem namo mahaalakshmai haripryaayai swaahaa



यंत्र:-





मुझे पूर्ण विश्वास है के इसी साधना के माध्यम से आप जीवन मे आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकते हो,अब तक आपने भी बहोत साधनाये की होगी परंतु यह साधना आपको निच्छित सफलता देगी । मैं इस बार वही मंत्र और क्रिया पोस्ट करने वाला हु जो मुझे अनुभूतित है,ऐसा मंत्र दे रहा हु जिसका जाप मैंने स्वय किया है और मुझसे पहिले जिन्होंने भी अग्नि पुराण पढ़ा है शायद उन्होंने भी किया ही होगा (अग्नि पुराण एक प्राचीन ग्रंथ है) ।






त्रैलोक्य पूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे।
यथा त्वं सुस्थिरा कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा।।
ईश्वरी कमला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरिप्रिया।
पद्मा पद्मालया सम्पद् रमा श्री: पद्मधारिणी।।
द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मीं सम्पूज्य य: पठेत्।
स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत् तस्य पुत्रदारादिभि: 



आदेश.......

19 Sept 2018

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"शहीद दिवस" जो देश के लिए शहीदों को पहचानने का दिन है और शहीद का अर्थ होता है "किसी शुभ प्रयत्न में अपने प्राण देनेवाला व्यक्ति" । इसी दिन पर रात्रि में यह ब्लॉग बनाया था 23 मार्च 2013 को "शहीद दिवस" के अवसर पर ताकि जो लोग तंत्र के क्षेत्र में अपना पूर्ण जीवन अर्पित कर दिए है उनके ज्ञान को आपके पास पहोचाने हेतु यह एक छोटासा प्रयास किया जाए । यह प्रयास सफलता पूर्वक रहा है,इस ब्लॉग से बहोत सारे लोगो को लाभ प्राप्त हुआ है,अब तक यह ब्लॉग 32,00,000 से ज्यादा लोगो ने पढ़ा हुआ है । एक छोटासा प्रयास अब लाखो लोगो के लिए ज्ञानवर्धक रहा है और साधना क्षेत्र में आगे बढ़ने हेतु मार्गदर्शक रहा है ।

पिछले पाँच वर्षों में मुझे आपको मार्गदर्शन करने का जो अवसर मिला वह मेरे लिए आनंददायक है,समय-समय पर आपको साधना प्रति प्रेरित करने में मुझे अपने जीवन का एक सुंदर अनुभव भी प्राप्त हुआ । आगे भी यह ब्लॉग चलता रहे और मातारानी जी के कृपा से आपके दुःख-दर्द का नाश हो यही कामना करता हूँ । अब इस बार मैं आप सभी को समय देने के इछुक हु सिर्फ एक विनंती है के "कोई भी साधक मुझसे गुरुदीक्षा नही मांगे क्योके मैं गुरु बनना नही चाहता हूँ" । मुझे अपना भाई समझिए या फिर मित्र समझिए परंतु गुरु ना समझे,आजकल फेसबुक यु-ट्यूब,व्हाट्सएप पर बहोत सारे लोग गुरु-सद्गुरु बन गए जब के उनको अभी तक स्वयं के रक्षा करने का ज्ञान भी नही है और शिष्य को रक्षा करने का वचन देते है । आपको जीवन मे गुरु की आवश्यकता हो तो आप गुरु गोरखनाथ जी को अपना गुरु माने और ब्लॉग में उनका गुरु मंत्र दिया हुआ है,उसीका जाप करे ।

आप सभी से जुड़ने हेतु आपको अपना मोबाइल नंबर देता हु ताकि आप फोन भी कर सके और व्हाट्सएप पर भी बात कर सके । मेरे तरफ से मैं आपके समस्या समाधान हेतु निःशुल्क सहाय्यता करने का वचन देता हू और कोई भी व्यक्ति तंत्र-मंत्र-काले जादू से परेशान होतो उसको अवश्य ही बाधा मुक्त करने का प्रयास करूंगा, यह सेवाएं मेरे तरफ से निःशुल्क है,जिसमे आपसे एक पैसा भी नही लिया जाएगा । आपको तंत्र मंत्र बाधा से डरने की कोई जरूरत नही है और किसी तांत्रिक के चक्कर मे फसने की भी जरूरत नही है ।

+918421522368 यह मेरा मोबाईल नंबर है और इसी पर से व्हाट्सएप भी चलेगा । आपको जब भी फोन करना हो तो सूबह 11 बजे के बाद और शाम को 7 बजे तक ही संपर्क करे । कभी-कभी आपको व्हाट्सएप पर सवाल का जवाब प्राप्त करने हेतु समय लग सकता है परंतु अवश्य ही आपको मुझे समय मिलते ही प्रश्न जवाब दिया जायेगा । वैसे यह मोबाईल नंबर पिछले 3 वर्षों से हमेशा से ही शुरू है और आप मे से बहोत सारे लोगो के पास होगा,आगे भी यही नंबर सेवारत रहेगा । किसी कारण से अगर मेरे पास समय ना रहे और मैं आपका फोन उठा नही सका तो नाराज मत होना,फिर एक-दो बार फोन करने का प्रयास करे ।





-आपका अपना
    गोविंदनाथ.

आदेश.........

14 Sept 2018

दिव्यांगना रूपोज्ज्वला अप्सरा साधना



दिव्यांगना रूपोज्ज्वला अप्सरा तो सम्पूर्ण यौवन को शरीर में उतार देने की स्वामिनी है। सुन्दर, पतला, छरहरा शरीर, मानो पुष्प की पंखुड़ियों को एकत्र करके बनाया गया हो, जिन गुलाब की कोमल व नरम पंखुड़ियों पर अभी तक ओस की एक बूंद भी ढलकी न हो, जैसे उन्हें कोमलता से बांधकर एक नारी शरीर तैयार कर दिया गया हो और उसमें से जो सुगंध प्रवाहित होती है वह असमय बूढ़े पड़ गए मन में नवीन चेतना भर देती है….

भारतीय शास्त्रों में सौन्दर्य को जीवन का उल्लास और उत्साह माना गया है, यदि किसी व्यक्ति के जीवन में सौन्दर्य नहीं है, तो वह जीवन नीरस और बेजान हो जाता है। इसका कारण यह है कि हम सौन्दर्य की परिभाषा ही भूल चुके हैं, हम अपने जीवन में हंसना, मुस्कराना ही भूल चुके हैं। हम धन के पीछे भागते हुए एक प्रकार से अर्थ-लोभी बन गये, जिसकी वजह से जीवन की अन्य वृत्तियां लुप्त सी हो गई हैं। ठीक इसी के विपरीत जैसा कि मैंने कहा, कि यदि हम अपने शास्त्रों को टटोलकर देखें तो हमारे पूर्वजों ने, उन ॠषियों और देवताओं ने सौन्दर्य को अपने जीवन में एक विशिष्ट स्थान दिया और उन अप्सराओं की साधनाएं सम्पन्न कीं और उन्हें सिद्ध किया जिनके द्वारा वे सौन्दर्यमय, तेजस्विता पूर्ण, सम्पन्न बन सके।

इन विशिष्ट अप्सराओं को सिद्ध करने के पीछे हमारे पूर्वजों का चिंतन यह नहीं था कि वे अपने सामने एक नारी-शरीर उपस्थित करके अपनी वासना को, कामोत्तेजना को शांत कर सकें, अपितु इनके माध्यम से उन्होंने जीवन में ऐश्वर्य, धन-धान्य पूर्ण सौन्दर्य आदि प्राप्त कर, विशिष्ट प्रतिमानों को समाज के सामने रखा, जिस सौन्दर्य का अर्थ ही पूर्णता व श्रेष्ठता देना है।

अप्सरा और सौन्दर्य दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं, और किसी भी अप्सरा के बारे में जानने के लिए हमें सबसे पहले उसके अपूर्व सौन्दर्य को समझना आवश्यक है।

सभी देवताओं व ॠषियों जैसे – वशिष्ठ, विश्वामित्र, इन्द्र आदि ने इस सौन्दर्य को अपने जीवन में न केवल स्थान दिया, बल्कि एक महत्वपूर्ण स्थान दिया, जिससे साधारण मानव को भी उर्वशी, मेनका, रम्भा आदि के साधनात्मक चिंतन को स्पष्ट कर उन्हें पूर्णता का मार्ग दिखलाया जा सके जो जीवन में रस भर दे, सौन्दर्य भर दे, और रस और सौन्दर्य अगर किसी के जीवन में प्राप्त हो जाए, तो वह जीवन सफल, श्रेष्ठ और अद्वितीय कहलाता है।

इसी सौन्दर्य का एक और प्रतिबिम्ब हमारे सामने प्रस्तुत हुआ है उस ‘रूपोज्ज्वला अप्सरा’ के माध्यम से जिसमें केवल लुभा लेने के लिए एक अदा की प्याली ही नहीं है अपितु पूर्ण सौन्दर्य का लबालब भरा जाम है, जिसे देखने मात्र से ही कोई व्यक्ति स्तब्ध और निष्प्राण हो जाए, …और व्यक्ति ही नहीं देवता भी जिसके सौन्दर्य को देखकर निष्प्राण से हो जाएं।

हां! ऐसा ही वह अप्रतिम और अनूठा सौन्दर्य, प्रेम और आनन्द से लबालब भरा हुआ, जो किसी को भी अपने अंग-प्रत्यगों के गठन से बांध ले, स्तम्भित कर दे उसे।

इस सौन्दर्य को देखकर कौन नहीं अपने-आप को भुला बैठेगा? आपने रूप, रंग, यौवन और मादकता की तो कई झलकियां देखी होंगी आपने अपने जीवन में, लेकिन जो सौन्दर्य आंखों से लेकर दिल तक एक अक्स बनकर उतर जाए, उसी का नाम है रूपोज्ज्वला अप्सरा ।

ऐसा अप्रतिम और अनूठा सौन्दर्य, जो खींच ले चुम्बक की तरह अपनी ओर, सौन्दर्य से भी अधिक मादकता और मन को लुभा लेने की कला अपने-आप में समाए, एक ऐसी अप्सरा, जिससे हम अभी तक अपरिचित थे, एक अप्रतिम सुन्दरी जिसे देखकर रग-रग में तूफान मचल उठे।

‘ रूपोज्ज्वला अप्सरा ’… जैसा इसका नाम है वैसा इसका सौन्दर्य भी है, जो एक निर्झर झरने की तरह एक अबाध गति से बह रहा हो। व्यक्ति को या देवता को पहली ही बार में बेसुध कर देने वाला सौन्दर्य, जो केवल और केवल मात्र रूपोज्ज्वला अप्सरा में ही है।
सौन्दर्य के समुद्र से उत्पन्न वह श्रेष्ठ रत्न, जिसके समान दूसरा कोई रत्न उत्पन्न ही नहीं हो सका और यह सच ही तो है, ऐसे रत्न क्या बार-बार गढ़े जाते हैं… नहीं, यह तो कभी-कभी प्रकृति के खजाने से अनायास प्राप्त हो जाने वाली वस्तु है और प्रकृति के इस खजाने से, सौन्दर्य के इस खजाने से पूर्ण सौन्दर्य की स्वामिनी केवल रूपोज्ज्वला अप्सरा ही हैं।

इस पूर्णता को देने वाली है यह ‘ रूपोज्ज्वला अप्सरा सिद्धि- साधना ’ जो अत्यंत ही दुर्लभ और गोपनीय है। इस साधना को सम्पन्न करने से व्यक्ति के अन्दर स्वतः ही कायाकल्प की प्रक्रिया आरम्भ होने लगती है।

इस साधना को सिद्ध करने पर व्यक्ति निश्चिंत और प्रसन्नचित्त बना रहता है, उसके जीवन में मानसिक तनाव व्याप्त नहीं होते, इस रूपोज्ज्वला अप्सरा साधना के माध्यम से उसे मनचाहा स्वर्ण, द्रव्य, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक पदार्थ उपलब्ध होते रहते हैं, यही नहीं, इस अप्सरा-साधना को सिद्ध करने पर साधक इसे जो भी आज्ञा देता है वह उस आज्ञा का तुरन्त पालन करती है, और इस प्रकार साधक अपनी आवश्यकता और महत्वपूर्ण सभी मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति कर लेता है।


साधना सामग्री – गुलाब पुष्प माला – 2, इत्र, चैतन्य रूपोज्ज्वला यंत्र और अप्सरा माला।


साधना-विधि

पूर्णिमा की रात्रि में किसी भी समय साधक इस साधना को सम्पन्न कर सकता है। साधक को चाहिए कि वह अत्यंत ही सुन्दर, सुसज्जित वस्त्र पहनकर साधना-स्थल पर बैठ जाए, इसमें किसी भी प्रकार के वस्त्रों को धारण किया जा सकता है, जो सुन्दर और आकर्षक लगें।

इस साधना में आसन, दिशा आदि का इतना महत्व नहीं है, जितना कि व्यक्ति के उत्साह, उमंग, सुमधुर सम्बन्धों की चेष्ठा और मिलन कामनाओं से भरे मन का है।

सर्वप्रथम साधक एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा दें फिर उस पर पुष्पों का आसन देकर मंत्र सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठायुक्त ‘ चैतन्य रूपोज्ज्वला अप्सरा यंत्र’ स्थापित करें। इसके पश्चात् उसके पास रखी गुलाब की दो मालाओं में से एक माला वह स्वयं धारण कर ले तथा दूसरी माला चैतन्य रूपोज्ज्वला अप्सरा यंत्र के सामने रख दें।

इसके पश्चात् यंत्र के समक्ष एक दीपक प्रज्वलित कर दें, सुगन्धित अगरबत्ती भी जला दें। यंत्र का पूजन कुंकुम, अक्षत, चन्दन से कर उस पर इत्र लगा दें। इसके पश्चात् इत्र की बूंद दीपक में भी डाल दें, दीपक सम्पूर्ण साधना काल जलते रहना चाहिए। इसी इत्र को साधक अपने कपड़ों पर भी लगा लें। उसके पश्चात् वह मंत्र जप आरम्भ कर दें।



मंत्र
।। ॐ श्रीं रूपोज्ज्वला वश्यमानय श्रीं फट् ।।


इस मंत्र का 21 माला जप 16 दिन करना होता है। यह मंत्र-जप अप्सरा माला से सम्पन्न किया जाता है। यह साधना विश्व की दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण साधना है। अगर व्यक्ति को अपने जीवन में वह सभी कुछ पाना है, जिसे श्रेष्ठता कहते हैं, दिव्यता कहते हैं, सम्पूर्णता कहते हैं तो वह मात्र रूपोज्ज्वला अप्सरा सिद्धि साधना के माध्यम से ही संभव है। यह साधना अपने मादक, प्रवीण, वरदायक, शक्तियुक्त, अद्भुत प्रभाव से सिद्ध साधक को पूर्णता देने में समक्ष हैं।

साधना सामग्री: 1450/-रुपये



Divyaangana Roopojjwalaa Apsara is the maestro of imbibing complete youthfulness within the body.  Beautiful, lovely, slim figure, resembling a dazzling collection of flower petals. Seems a creation of soft delicate rose petals, which haven’t tasted even a single drop of dew. Delicately enmeshed tenderly into a feminine form, emanating a sweet fragrance, capable of rejuvenating even the old!

The Indian holy scriptures consider beauty to be the energy and excitement of life. A life without beauty becomes monotonous and numb. We have forgotten the definition of beauty, and our life lacks laughter and smiles. The rat-race to run after wealth has made us so greedy and mean, that we have forgotten other aspects of life. As I earlier mentioned, quiet stark opposite, If we pore through our holy scriptures, we will realize that our ancestors, the wise sages and Gods accorded an elevated pedestal to beauty in their lives. They successfully accomplished the Sadhana practices of  celestial nymphs Apsaras, and filled their lives with beauty, intensity, perfection and totality.

Our forefathers did not manifest these special Apsaras to satiate their lust or crave for a female-body. Instead, their motive was to present a medium to the society to obtain luxuries and wealth-prosperity through these Sadhanas, thereby presenting a perfect comprehensive definition of beauty.

The beauty and Apsara are synonyms of each other, and we can understand about Apsara only after comprehending its unique beauty.
All Gods and sages like – Vashisht, Vishwamitra, Indra etc. accorded a significant position to beauty in their liveṣ. They demonstrated the divine path of attaining complete perfection through clarification of spiritual thoughts about Urvashi, Menaka, Rambha etc. This enabled them to fill divine nectar and celestial beauty into their lives. This divine combination of nectar and beauty in life makes it successful, perfect and total.

This “Roopojjwalaa Apsara” reflects another perspective of this divine beauty. Instead of being just a tempting cup of beauty, it exhibits  an inexhaustible  bubbling brimming pitcher of beauty with captivating power to strike anyone into numbing inanity… Numbing not just ordinary humans, but even divine Gods.
Yes! This is the stunning presentation of dazzling incomparable beauty, brimming with love and joy, captivating and mesmerizing everyone with this divine emplacement of human body.
Who will not lose himself on sight of this bewitching beauty. You would have witnessed many flashes of beauty, magnificence, youth and splendor in your life,  but Roopojjwalaa Apsara is the divine unparalleled form of beauty from mesmerizing eyes to lovely heart.
The magnetic captivation of the stunning startling beauty, enhanced with the artful temptation and bewitching beauty, a celestial Nymph whose very existence was hitherto unknown till recently, an amazing beauty which fills our veins with storming temptations.

“ Roopojjwalaa Apsara” … the dazzling beauty befitting the name, flowing unabated rapidly like a hilly spring. Only Roopojjwalaa Apsara assimilates the beauty to captivate any person or God at first sight.
The rare gem extracted from the sea of ​​beauty, which is completely unique and unparalleled. And it is factually true as such gems are produced but only once…. No, it was sheer luck that this dazzling gem emerged from the treasure of mother nature. Only Roopojjwalaa Apsara can accurately fit-in the complete, perfect definition of amazing beauty.

This rare and confidential “ Roopojjwalaa Apsara Siddhi Sadhana ” provides this perfection to the beauty. The rejuvenation process automatically starts within the Sadhak of this Sadhana practice.
After accomplishing this Sadhana, the person stays relaxed and happy, mental tensions do not appear in his life, and he continues to procure the desirable gold, wealth, clothes, jewelry and other material items through Roopojjwalaa Apsara Sadhana. Moreover the Apsara instantly obeys any order which the Sadhak commands Her to do. Thus the Sadhak manages to fulfill all kinds of his important and necessary wishes-desires.


Sadhana Materials – Rose Floral Garland -2 ,  Itra (Perfume), Cheitanya Roopojjwalaa Yantra and Apsara Mala.



Sadhana Procedure

The Sadhak can perform this Sadhana at any time during the full-moon night. The Sadhak should sit in this Sadhana wearing highly beautiful and attractive clothes. Any kinds of garments can be worn, provided they are attractive and beautiful-stunning.

The Asana and directions do not have much importance in this Sadhana, rather the energy, enthusiasm and excitement to create sweet relationship and wishful-mind are much more significant.

First, the Sadhak should spread a yellow colored cloth on a wooden board. Make a seat of flowers on it and place Mantra-Siddha Prana-Pratisthaayukt consecrated-sanctified Cheitanya Roopojjwalaa Apsara Yantra on it. Then he should wear one rose garland himself and offer the second garland onto Cheitanya Roopojjwalaa Apsara Yantra .

Then, he should light a lamp in front of the Yantra, and ignite fragrant  aromatic incense sticks. Worship the Yantra with Kumkum (vermilion) , Akshat (Unbroken Rice)  and Chandan (Sandalwood) and pour perfume on the Yantra. A drop of perfume should also be dropped in the lighted lamp. The lamp should be continuously lit during the entire Sadhana period. The Sadhak should also apply this perfume on his clothes. Thereafter he should start Mantra chanting –



Mantra
Om Shreem Roopojjwalaa Vashya Maanaya Shreem Phat


21 malas (rosary-rounds) of this Mantra 16 days should be chanted. This Mantra chanting is performed using the Apsara Mala .

This is a highly rare and significant Sadhana. A person can attain whatever he seeks, the excellence-perfection, divinity, totality; only though the Roopojjwalaa Apsara Siddhi Sadhana. This sadhana practice provides  completion-perfection to the Sadhak through its stupefying, proficient, bane, powerful and amazing benefits.


Sadhana Materials –1450/-Rs.

आदेश.........

9 Sept 2018

पूर्ण पितृदोष निवारण साधना.





मुख्य रूप से जन्म कुण्डली से ही पितृ दोष का निर्णय किया जाता है परंतु स्वप्न में पितृ के दर्शन होना,घर मे किसी के मृत्यु के बाद उनका अहसास होना भी एक प्रकार से पितृदोष ही है । सूर्य आत्मा एव पिता का कारक ग्रह है,पिता का विचार सूर्य से होता है । इसी प्रकार चन्द्रमा मन एव माता का कारक ग्रह है, सूर्य जब राहु की युति में हो तो ग्रहण योग बनता है,सूर्य का ग्रहण अतः पिता आत्मा का ग्रहण हुआ,सूर्य राहु की युति पितृ दोष का निर्माण करती है,सूर्य व चन्द्र अलग अलग या दोनों ही राहु की युति में हो तो पितृ दोष होता है । शनि सूर्य पुत्र है,यह सूर्य का नैसर्गिक शत्रु भी है,अतः शनि की सूर्य पर दृष्टि भी पितृ दोष उत्पन करती है,इसी पितृ दोष से जातक आदि व्याधि उपाधि तीनो प्रकार की पीड़ाओं से कष्ट उठाता है,उसके प्रत्येक कार्ये में अड़चन आती है । कोई भी कार्य सामान्य रूप से निर्विघ्न सम्पन्न नहीं होते है,दूसरे की दृष्टि में जातक सुखी दिखाई पड़ता है परन्तु जातक अतिरिक्त रूप से दुखी होता है,जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट उठाता है,कष्ट किस प्रकार के होते है इसका विचार व निर्णय सूर्य राहु की युति अथवा सूर्य शनि की दृष्टि सम्बन्ध या युति जिस भाव में हो उसी पर निर्भर करता है,कुंडली में चतुर्थ भाव नवम भाव,तथा दशम भाव में सूर्य राहु अथवा चन्द्र राहु की युति से जो पितृ दोष उतपन्न होता उसे श्रापित पितृ दोष कहते है,इसी प्रकार पंचम भाव में राहु गुरु की युति से बना गुरु चांडाल योग भी प्रबल पितृ दोष कारक होता होता है,संतान भाव में इस दोष के कारण प्रसव कष्टकारक होता है, आठवे या बारहवे भाव में स्थित गुरु प्रेतात्मा से पितृ दोष करता है,यदि इन भावो में राहु बुध की युति में हो तथा सप्तम,अष्टम भाव में राहु और शुक्र की युति में हो तब भी पूर्वजो के दोष से पितृ दोष होता है,यदि राहु शुक्र की युति द्वादश भाव में हो तो पितृ दोष स्त्री जातक से होता है इसका कारण भी स्पष्ट होता है की बारहवा भाव भोग एव शैया सुख का स्थान है,अतः स्त्री जातक से दोष होना स्वभाविक है।

1-यदि कुण्डली में में अष्टमेश राहु के नक्षत्र में तथा राहु अष्टमेश के नक्षत्र में स्थित हो तथा लग्नेश निर्बल एव पीड़ित हो तो जातक पितृ दोष एव भूत प्रेत आदि से शीघ्र प्रभावित होते है ।

2-यदि जातक का जन्म सूर्य चन्द्र ग्रहण में हो तथा घटित होने वाले ग्रहण का का सम्बन्ध जातक के लग्न,षष्ट एव अष्टम भाव बन रहा हो तो ऐसे जातक पितृ दोष,भूत प्रेत,एव अतृप्त आत्माओं के प्रभाव से पीड़ित रहते है ।

3-यदि लग्नेश जन्म कुण्डली में अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो तथा राहु ,शनि,मंगल के प्रभाव से युक्त हो तो जातक पितृ दोष,अतृप्त आत्माओं का शिकार होता है ।

4-यदि जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम भाव तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तथा चतुर्थेश षष्ठ भाव में स्थित हो और लग्न और लग्नेश पापकर्तरी योग में स्थित हो तो जातक मातृ शाप एव अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है ।

5-यदि चन्द्रमा जन्म कुण्डली अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो तथा चन्द्रमा एव लग्नेश का सम्बन्ध क्रुर एव पाप ग्रहो से बन रहा हो तो जातक पितृ दोष,प्रेतज्वर एव अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है ।

6-यदि कुंडली में शनि एव चन्द्रमा की युति हो अथवा चन्द्रमा शनि के नक्षत्र में,अथवा शनि चन्द्रमा के नक्षत्र में स्थित हो तो जातक ऊपरी हवा,पितृदोष,एव अतृप्त आत्माओं से शीघ्र प्रभावित होता है ।

7-यदि लग्नेश जन्म कुंडली में अपनी शत्रु राशि में निर्बल आव दूषित होकर स्थित हो तथा क्रूर एव पाप ग्रहो से युक्त हो तथा शुभ ग्रहो की दृस्टि लग्न भाव एव लग्नेश पर नहीं पड़ रही हो,तो जातक ऊपरी हवा,एव पितृ दोष से पीड़ित होता है ।

8-यदि जातक का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुक्ल पक्ष की सप्तमी के मध्य हुआ हो और चन्द्रमा अस्त,निर्बल,एव दूषित हो,अथवा चन्द्रमा पक्षबल में निर्बल हो,तथा राहु शनि से युक्त नक्षत्रिये परिवर्तन बना रहा हो तो जातक अद्रशय रूप से मानशिक उन्माद का शिकार होता है ।

9-यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा राहु का नक्षत्रीय योग परिवर्तन योग बना रहा हो,तथा चन्द्रमा पर अन्य क्रूर अव पाप ग्रहो का प्रभाव एव लग्न एव लग्नेश भाव पर हो तो जातक अतृपत आत्माओं का का प्रभाव होता है ।

10-यदि कुंडली में चन्द्रमा राहु के नक्षत्र में स्थित हो तथा अन्य क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव चन्द्रमा,लग्नेश,एव लग्न भाव पर हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से प्रभावित होता है ।

11-यदि कुंडली में गुरु का सम्बन्ध राहु से हो तथा लग्नेश एव लग्न भाव पापकर्तरी योग में हो तो जातक को अतृप्त आत्माए अधिक परेशान करती है ।

12-यदि बुध एव राहु में नक्षत्रीय परिवर्तन हो तथा लग्नेश निर्बल होकर अष्टम भाव में स्थित हो साथ ही लग्न एव लग्नेश पर क्रूर एव पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृप्त आत्माओं से परेसान रहता है और मनोरोगी बन जाता है।

13-यदि कुंडली में अष्टमेश लग्न में स्थित हो तथा लग्न भाव तथा लग्नेश पर अन्य क्रूर तथा पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अतृप्त आत्माओं का शिकार होता है ।

14-यदि जन्म कुण्डली में राहु जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी निर्बल एव पीड़ित होकर अष्टम भाव में स्थित हो तथा लग्न एव लग्नेश पापकर्तरी योग में स्थित हो तो जातक ऊपरी हवा,प्रेतज्वर,और अतृप्त आत्माओं से परेशान रहता है , इसके अतिरित और भी बहुत से योग कुंडली में होते है जो जातक को पितृ दोष से ग्रसित होता है,पितृ दोष भी भांति भांति के होते है,इनमे पितृशाप, मातृशाप, प्रेतशाप आदि दोषो के कारण जातक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक,अक्षमात दुर्घटनाओं से परेशान रहता है,जातक जीवन नर्क बन जाता है ।



पितृ दोष से हानि-

(1) संतान न होना, संतान हो तो विकलांग, मंदबुद्धि या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना ।
(2) नौकरी, व्यवसाय में हानि, बरकत न हो ।
(3) परिवार में ऐक्य न हो, अशांति हो ।
(4) घर के सदस्यों में एक या अधिक लोगों का अस्वस्थ होना, इलाज करवाने पर ठीक न होना ।
(5) घर के युवक-युवतियों का विवाह न होना या विवाह में विलंब होना ।
(6) अपनों के द्वारा धोखा दिया जाना ।
(7) दुर्घटनादि होना, उनकी पुनरावृत्ति होना ।
(8) मांगलिक कार्यों में विघ्न होना ।
(9) परिवार के सदस्यों में किसी को प्रेत-बाधा होना इत्यादि......।



गजछाया योग में श्राद्ध का पांच गुना फल
गज छाया योग में पड़ने वाले पितृ पक्ष को, वंश वृद्धि, धन संपत्ति और पितरों से मिलने वाले आशीर्वाद के लिये विशेष माना गया है ।ऐसी मान्यता है कि गज छाया योग में पितृकर्म और तर्पण करने से, पांच गुना फल मिलता है। पितृ आत्मायें तृप्त होकर, अपने वंशजों को भरपूर आशीर्वाद देती हैं।


गजच्छाया योग हर वर्ष नहीं आता है। लेकिन जब भी गजच्छाया योग होता है तो यह पितृ पक्ष के दौरान होता है और यह श्रद्धा अनुष्ठान और दान के प्रदर्शन के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। गजच्छाया योग बनने के लिए पितृपक्ष में त्रयोदशी तिथि को चंद्र मघा नक्षत्र में तथा सूर्य हस्त नक्षत्र में होना चाहिए। जब सूर्य हस्त नक्षत्र में है और चंद्रमा मघा नक्षत्र में होने के के दौरान पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि गजच्छाया योग के रूप में जाना जाता है । यह शुभ संयोजन या तो त्रयोदशी तिथि पर या अमावस्या तिथि पर होता है ।


* जब पितृपक्ष में सूर्य और राहू या फिर सूर्य या केतु की युति हो तो गज छाया योग बनता है ।


* सूर्य पर राहू या फिर केतू की दृष्टि पड़ने पर गज छाया योग बनता है ।


इस वर्ष 8 ऑक्टोबर 2018 को दोपहर 1 बजकर 33 मिनट पर गजच्छाया योग बन रहा है और यह योग 9 ऑक्टोबर सुबह 9 बजकर 16 मिनट पर समाप्त हो जाएगा । इस समय पर पितृ शांति या पितृ दोष निवारण साधना करने से पाच गुणा फल मिलेगा ।

स्कन्दपुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण, वराहपुराण, महाभारत आदि में एक अतिविशेष मुहूर्त गजच्छाया (हस्तिच्छाया) योग का वर्णन मिलता है जो अक्षयफल दायक है और जिसमें श्राद्ध करने से पितर कम से कम 13 वर्ष तृप्त रहते हैं ।



स्कन्दपुराण में पितरों की तृप्ति के लिए गजच्छाया योग में श्राद्ध करने का निर्देश है-

व्यतीपातो गजच्छाया ग्रहणं सोम सूर्ययोः ॥
एतेषु युज्यते श्राद्धं प्रकर्तुं पितृतृप्तये ॥
एषा मेध्यतमा राजन्युगादिः कलिसंभवा॥
स्नाने दाने जपे होमे श्राद्धे ज्ञेया तथाऽक्षया ॥
अस्यां चेत्तु गजच्छाया तिथौ राजन्प्रजायते ॥ तदाऽक्षयं मघायोगे श्राद्धं संजायते ध्रुवम्॥



पितृदोष निवारण मंत्र साधना-


सर्वप्रथम किसी बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाये,भोजपत्र पर अष्टगंध के स्याही में अनार का कलम डुबोकर यंत्र लिखें, यंत्र को कपड़े पर स्थापित कर दे । यंत्र के सामने तिल के तेल का दीपक जलाएं और सुगंधित धूप जलाए,तील के लड्डू का प्रसाद भी किसी प्लेट में रखिये । काली हकीक माला से 11 माला जाप करे और जाप के बाद पितृदेवता से आशीर्वाद का प्रार्थना करे । साधना समाप्ति पर सभी सामग्री को सफेद कपड़े में बांधकर शुद्ध जल में विसर्जित कर दे ।


मंत्र-
।। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं मम् सर्व पितृ प्रसीद प्रसीद ह्रौं ह्रीं ह्रां नम: ।।
Om hraam hreem hroum mam sarv pitru prasid prasid hroum hreem hraam namah



यह साधना हजारो बार आजमायी हुई है,मैं पिछले 16 वर्षों से यही मंत्र साधना मुझसे मार्गदर्शन प्राप्त करने वाले व्यक्तियो को देते आरहा हु,इसका अनुभव शब्दो मे लिखना कठिन है इसलिए आप स्वयं अनुभव करे ।



आदेश.....

7 Sept 2018

जिन्न मंत्र साधना ( jin mantra sadhna)





"जिन्न' एक रूप में जादूई शक्तियो में पूर्ण शक्ति का नाम है। यह कभी उन इंसानों के लिए प्रयोग होता है जो मात्र अपनी इच्छा प्रगट करने से अपने जीवन के सभी जरूरी कार्ये को कर सकते है। वह गायब हो सकते है, उड़ सकते हैं, किसी भी जीव या वस्तु का रूप धारण कर सकते है, किसी भी स्थान तक मात्र अपनी इच्छा से पहुच सकते है और किसी भी वस्तु को मात्र अपनी इच्छा प्रगट करने से पा सकते हैं। वह उन सभी कार्यों को जिसे एक इंसान कई सालों की मेहनत से कर पाता है,वह मात्र अपनी इच्छा प्रगट करने से कर सकते हैं।

जिन्न को हक़ है की वो इंसानी दुनिया में दखल-अंदाजी कर सकते है लेकिन इसके लिए उन्हें इंसानो के साथ रिश्ता बनाना पड़ता है।

जिन्नात से इंसान डरते है मगर इसके विपरीत जिन्नात मानवीय आवासों से दूर रहना पसंद करते है। यही वजह है की हमें सुनसान जगहों पर ज्यादा सतर्कता बरतनी चाहिए।

जिन्नात भी इंसानी तौर तरीके से रहते है जैसे शादी करना, बच्चे पैदा करना और मरना पर उनकी दुनिया इंसानी दुनिया से अलग है।

जिन्नात अपने असली रूप में बहुत कम दिखते है ज्यादातर वो मानवीय शक्ल इख़्तियार करते है।
इन्सानी वजूद मिट जायेगा मगर " जिन्नात " कायनात के दिन तक अस्तित्व में रहेंगे।

जिन्नात इंसानों को समझने की ताकत रखते हैं , जिन्नात बहुत ही जल्द इंसानों को अपना दोस्त बना लेते हैं । इसलिए साधना के माध्यम से इन्हें सिद्ध किया जाता है ।


जिन्न मंत्र:-

।। बिस्मिल्लाहिरहिमानीरहिम लाइल्ला लिल्लाह मुहम्मद रसूललिल्ला मुसलमानी अबादानी मरीन खाय परनी छोड़ मुस्लमान बहिस्त को खावे हुआ ईदा का रोज असल कर सैयद नहाजा बाबा तोप नगाड़ा बकतर तोप मंगाय दिया प्याले सहायबा सबचल खाये चौकी पे चौकी चली अम्बर हुआ सेत सैयदो से शरीहुई तरवर तारागढ़ के खेत खिगासा घोडा नहीं मीना सामर्द नहीं जिसने सरवार तारागढ़ तोरा अजयपाल सा देव नहीं जिसने चक्कर चलाया मीरा पड़ी नमाज़ वह का वही ठहराया आतिलकुरसी बंद गकुरात घाटे बाढे तुही समान आकाश बांध पाताल बांध बांधे नदी तलाब देह बांध धड को भी बांधे कहा हुये जार मर घटिया मसान हदिया मसान जहिहिया मसान मिरमिया मसान फलकिया मसान कालका ब्रह्मराक्षस की चुडेल (यहां पर कुछ महत्वपूर्ण शब्द गोपनीय रखे जारहे है) तो सूअर काट सुअर की बोटी दांते तारे दबाएगा सतर नाड़ी बहतर कोठा से बांध बांधकर जायेगा तो चमार के छिले और धोबी की नाद मे पड़े चलतों मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फलो मंत्र ईश्वरी वाचा छूँ मंत्र ।।



विधि :- गुरुवार या शुक्रवार की रात को 10 बजे अपने घर से निकले और मोमबत्ती,धूप,जन्नत-ए-फिरदौस अत्तर और ऋतुफल लेके सुनसान जगह या स्मशान मे जाये । हरे रंग के आसन पर बैठे,आसन के नीचे "जिन्न सिद्धि यंत्र" रखे जिससे जिन्न आपके तरफ आकर्षित होकर प्रत्यक्ष हो सके और "आयतुल कुर्सी युक्त रक्षा कवच" धारण करे,बिना रक्षा कवच के साधना करने के बारे मे ना सोचे अन्यथा स्वयं के हानि के आप स्वयं जिम्मेदार माने जाएंगे अथवा रोज 21 बार आयतुल कुर्सी पढ़कर साधना करे । 242 बार मंत्र का जाप इसमे रोज करना जरूरी है, इस तरह 21 दिन तक जाप करे । इस मंत्र के पीर देवता जिनको जीन्न कहते हे,वो साधक के सामने आकर  साधक के सब कार्यो को पूर्णा करेगे परंतु प्रत्यक्ष होते ही साधक मंत्र के देवता से वचन ले ।


साधना से पूर्व मुझसे मार्गदर्शन प्राप्त करे,इस साधना का न्यौच्छावर राशि 2450/-रुपये है,सामग्री प्राप्त करने हेतु snpts1984@gmail.com पर सम्पर्क करे । मंत्र के कुछ शब्द मैं गोपनीय रख रहा हु ताकि कुछ मूर्ख लोग इसे कॉपी-पेस्ट करके अपने नाम से ना छापे और अपने अग्यानता का परिचय ना दे ।



आदेश......

18 Aug 2018

ज्ञान उत्कीलन साधना

गुरु दीक्षा प्राप्त व्यक्ति के जीवन मे एक ऐसा समय आता है जिसमे वह गुरु के उपदेश को भूलते जाता है । शिष्य अपने गुरुमुख से प्राप्त मंत्रो पर संदेह करने लगता है, तो कभी कभी उसे गुरु पर अविश्वास भी होने लगता है । ऐसे स्थिति में शिष्य को गुरुमंत्र की महिमा भी गलत लगने लगती है और एक अच्छा शिष्य पतन के रास्ते पर चलने लगता है ।

"सात चक्रो का सफर है
एक को पार करो तो जानो
दूजा तो रास्ता खोल देगा
पाँचवे से आगे ही गुरु शिव रूप में दर्शन देगे
और छठवे पर पुर्णत्व देगे"।

यह शब्द मैने एक सन्यासी से सुने थे,जो सप्तचक्र जाग्रत करने के लिए सब कुछ त्याग कर बैठा था और गृहस्थ जीवन जीने वाले साधको पर हस रहा था । उसे सफलता तो नही मिली थी परंतु वह कई साधनात्मक रहस्यों से अवगत था, पहिले तो मैंने मान लिया था के वह मूर्ख है,एक ऐसा मूर्ख जो ज्ञानी होकर भी साधनात्मक जीवन से दूर रहकर यादों में खोया रहेता है । उसने एक बात बताई जो जीवन मे मृत्यु के आखरी क्षणों तक याद रहेगी "सबसे बड़ा गुरु और गुरु से बड़ा गुरु का ध्यास",ये शब्द सुनकर मैंने मान लिया के वह मूर्ख नही अपितु इस संसार का सबसे बड़ा ज्ञानी है । जिसने गुरुदीक्षा प्राप्त कर जीवन मे गुरु को प्राप्त करने का संकल्प लिया था,उसके पास साधनात्मक ज्ञान होकर भी वह सिर्फ गुरुतत्व को समजने के लिए वह कठिन उपासना में लगा हुआ था ।

आज मैं एक ऐसे विषय को आपके सामने रखने की कोशिश कर रहा हु जो शायद आप सभी के लिए आवश्यक है । "ज्ञान का उत्कीलन" शायद यह बात सुनने में नही आता है परंतु "ज्ञान के उत्कीलन" की आवश्यकता सभी को है,चाहे वह कोई भी हो । इस संसार मे जितनी भी चैतन्य शक्तियाँ अवतरित हुई है वह "ज्ञान के उत्कीलन" को समझकर ही अवतरित होती आरही है । भगवान राम सिर्फ रावण के वध हेतु धरती पर नही आये थे,उन्होंने भी इसी धराह पर गुरु से ज्ञान प्राप्त किया और अपने अद्भुत ज्ञान का उत्कीलन किया । उत्कीलन का अर्थ सिर्फ इतना ही है ‘परस्पर दो और लो’,कीलित मंत्रो का उत्कीलन एक अलग क्रिया है परंतु ज्ञान के उत्कीलन को समझना कठिन है । आप सभी ज्ञानी हो परंतु माया का एक जाल जो आपको ज्ञानी होते हुए भी गलतियां करने पर मजबूर कर देता है । आप जानते हो शराब पीने से जीवन बर्बाद होता है परंतु पीने वाला शराब पीना छोडता नही है और उसे पीते हुए देखने वाला उसे शराब पीने से रोकने के लिए ज्यादा प्रयास करता नही है ।

आज जो साधना दे रहा हु,वह आपके जीवन मे ज्ञान को उत्कीलन कर देगा,जो ज्ञान आपने प्राप्त किया है उसीको आपके जीवन मे उतार देगा,जैसे अच्छे विचार सभी पढ़ते है परंतु उसको जीवन मे उतारते नही है । गुरु से बहोत ज्ञान प्राप्त कर लेते है परंतु जीवन मे उस ज्ञान के महत्व को समजते नही है ।

इस साधना के माध्यम से आप जो भी किताब पढोगे उसमे आपको आपके अंदर के गुरु से पूर्ण सहाय्यता प्राप्त होगी,इसीसे आपको साधनात्मक दुर्लभ ज्ञान प्राप्त होगा और आप कई सारे रहस्यों को समझ सकेंगे ।"यथा पिंडे,तथा ब्रम्हांडे" का अर्थ अगर समजना चाहते हो तो यही साधना आपको इस दुर्लभ ज्ञान को प्राप्त करने में मार्गदर्शक है । इस साधना के बाद गुरु स्वयं सुष्म रूप में आकर आपको ज्ञान और आशीर्वाद प्रदान करेंगे ।

मंत्र-

।। ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तचक्र गुरु रहस्यम उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।।

Om shreem kleem hreem saptachakra guru rahasyam utkilanam kuru kuru swaha

साधना किसी भी गुरुवार से प्रातः 5 बजे प्रारंभ करे,11 दिन की साधना है,रोज 11 माला जाप करे,आसन वस्त्र पिले रंग के हो और मुख उत्तर दिशा में हो,धूप-दीप नित्य किया करे,दीपक घी का लगाए,मंत्र जाप स्फटिक माला से करना अनिवार्य है,माला आपको पंसारी के दुकान से मिल जाएगा ।
संसार के समस्त साधनाओ के दुर्लभ रहस्य को समजने हेतु यह साधना करना अनिवार्य है,इसीसे आपको अन्य साधनाओ में भी सफलता प्राप्त होगी ।

आदेश.........

6 Aug 2018

रोग निवारण के उपाय


जिस घर में जब कोई रोग आ जाता है तो उस रोगी के साथ साथ उस घर के सभी व्यक्ति भी मानसिक रूप से चिंता और आशांति का अनुभव करने लगते है , लेकिन कुछ छोटी छोटी बातो को ध्यान में रखकर हम हालत पर काबू पा सकते है , शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते है ।
1.यदि आपके परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तो अगर संभव हो तो उसे सोमवार को डॉक्टर को दिखाएँ और उसकी दवा की पहली खुराक भगवान शिव को अर्पित करके कुछ राशी भी चड़ा दें और रोगी व्यक्ति के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना करें , व्यक्ति के बहुत जल्दी ही ठीक हो जाने की सम्भावना बन जाती है ।
2.हर पूर्णिमा को किसी भी शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ से अपने परिवार को निरोग रखने की प्रार्थना रखें ,तत्पश्चात मंदिर में और गरीबों में कुछ ना कुछ फल,मिठाई और नगद दान अवश्य दें ।
3.रोगी व्यक्ति को मंगलवार और शनिवार किसी भी दिन हनुमान जी की मूर्ति से सिंदूर लेकर उसके माथे पर लगाने से उसका दिल मजबूत होता है और रोगी जल्दी स्वस्थ भी होता है ।
4.यदि कोई बीमार व्यक्ति प्रात: काल एक गिलास पानी लेकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खड़े होकर ऐं मन्त्र का 21 बार जाप करके पी जाय एवं ईश्वर से अपने रोग को दूर करने के लिए प्रार्थना करें तो शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। यह प्रयोग सोमवार से शुरू करके रविवार तक लगातार 7 दिन तक करना चाहिए ।
5.अशोक के वृक्ष की ताजा तीन पत्तियों को प्रतिदिन प्रातः चबाने से चिंताओं से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य भी उत्तम बना रहता है ।
6.यदि किसी बीमार व्यक्ति का रोग ठीक ना हो रहा हो तो उसके तकिये के नीचे सहदेई और पीपल की जड़ रखने से बीमारी जल्दी ठीक होती है ।
7.यदि किसी रोगी को मृत्युतुल्य पीड़ा हो रही हो , तो जौ के आटे ( बाजार में यह आसानी से उपलब्ध है ) में काले तिल और सरसों का तेल मिला कर रोटी बना कर रोगी के ऊपर से 7 बार उतार कर किसी भैंसे को खिलाएं त्वरित लाभ मिलता है ।
8.सूर्य जब भी मेष राशी में ( 13 से 15 अप्रैल ) में प्रवेश करें तो प्रात: काल नीम की ताजी कपोलें गुड़ व मसूर के साथ पीस कर खाने से वर्ष भर रोग दूर रहते है , यह घर के सभी छोटे बड़े व्यक्तियों को खाना चाहिए ।
9.यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय से बीमार है तो उसे घर के दक्षिण पश्चिम कोने ( नैत्रत्य कोण ) के कमरे में दक्षिण दिशा में सर रखकर सुलाएं , उनकी दवाएं और जल कमरे के ईशान कोण में रखें । ध्यान रखें रोगी व्यक्ति अपनी दवाएं और अपना खाना पीना ईशान कोण अथवा पूर्व की तरफ मुंह करके ही खाएं ।
10.यदि घर का कोई व्यक्ति अधिक समय से बीमार हो तो उसके तकिये के नीचे मणिक्य रखने से वह जल्दी स्वस्थ होता है ।
11.सभी रोगों में पीपल की सेवा से बहुत लाभ प्राप्त होता है , रविवार को छोड़कर नियमित रूप से पीपल के वृक्ष पर प्रात: मीठा जल चड़ाकर उसकी जड़ जो छूकर अपने माथे से लगायें पुरुष पीपल की 7 परिक्रमा करें स्त्री ना करें और अपने रोग को दूर करने की प्रार्थना करें अति शीघ्र लाभ मिलता है ।
12.यदि आपके परिवार में कोई लम्बे समय से बीमार है तो आप प्रति माह कम से कम एक बार किसी भी अस्पताल में जाकर गरीबों में अपनी सामर्थ्यानुसार दवा एवं फलों का वितरण अवश्य करें, इससे रोगी को भी लाभ होगा और घर के अन्य सभी सदस्य भी निरोगी रहेंगे। यह बहुत ही चमत्कारी और सिद्ध प्रयोग है ।
13.यदि आप कभी किसी भी बीमार व्यक्ति को देखने जाएँ तो फूल और फल लेकर अवश्य जाएँ और यदि संभव हो तो कुछ ना कुछ नकद राशी भी अवश्य दें , इससे आपके परिवार का सदैव रोगों से बचाव होगा ।
14.रोगी व्यक्ति को पान में गुलाब की सात पंखुडियां खिलाने से अगर उसको कोई नजर लगी है तो उससे छुटकारा मिलता है और दवा भी जल्दी असर करती है ।
15.यदि कोई व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में हो उसके बचने की कोई आशा ना हो परन्तु उसके प्राण भी नहीं निकल रहें हो तो उसके हाथ से नमक का दान करवाना चाहिए ।
16. स्वस्थ शरीर के लिए एक रुपये का सिक्का लें। रात को उसे सिरहाने रख कर सो जाएं। प्रातः इसे स्मशान की सीमा में फेंक आएं। शरीर स्वस्थ रहेगा।
17. यदि कोई व्यक्ति काफी समय से बीमार है तो एक नारियल से उसकी नज़र उतार कर उस नारियल को तंदूर/अंगीठी/हवनकुंड अथवा किसी तसले में आग जलाकर उसमें जलाने से रोगी अति शीघ्र स्वस्थ होने लगता है ।
18. सात जटा वाले नारियल शुक्ल पक्ष के सोमवार को ॐ नमा शिवाय मन्त्र का जाप करते हुए नदी में प्रवाहित करने से उस व्यक्ति के घर से रोग और दरिद्रता का नाश होता है ।
19. रोगी के पीने वाले जल में थोड़ा सा गंगाजल मिला दीजिये ,वह जब भी जल पिए उसे वह जल ही पीने को दिया जाय....... शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलेगा ।
20. जिस व्यक्ति की तबियत ख़राब रहती है उसके पलंग की पाए में चाँदी के तार में एक गोमती चक्र बांध दें स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी दूर होने लगेगी । ( गोमती चक्र को पहले गंगाजल में धोकर घर के मंदिर में रखकर तिलक लगाकर धुप/दीप/अगरबत्ती दिखाकर शुद्ध कर लें।)
21. एक देसी पान,गुलाब का फूल और ग्यारह बताशे बीमार व्यक्ति के ऊपर से 31 बार उतार कर किसी चौराहे पर रख दें ध्यान रहे कोई टोके नहीं ....व्यक्ति को शीघ्रता से स्वास्थ्य लाभ मिलने लगेगा ।
22. यदि कोई व्यक्ति तमाम इलाज के बाद भी बीमार रहता है तो पुष्य नक्षत्र में सहदेवी की जड़ उसके पास रखिये .....रोग दूर लगेगा ।
23.पीपल के वृक्ष को प्रातः 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।
24. किसी कब्र या दरगाह पर सूर्यास्त के पश्चात् तेल का दीपक जलाएं। अगरबत्ती जलाएं और बताशे रखें, फिर वापस मुड़ कर न देखें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा।
25. धोबी के घर से तुरंत धुलकर आये वस्त्रों को मन ही मन रोगी के अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हुए रोगी के शरीर से स्पर्श करा देने से बहुत जल्दी आराम मिलता है ।
26. हर माह के प्रथम सोमवार को सुबह सवेरे अपने ईष्ट देव का नाम लेते हुए थोड़ी सी पीली सरसों अपने सर पर से 7 बार घुमाकर घर से बाहर फ़ेंक दें .....रोग आपके पास भी नहीं आयेंगे ।
27. यदि घर में आपकी माता जी को निरंतर कोई रोग सता रहा है तो सोमवार के दिन 121 किसी भी साइज़ के पेड़े लेकर बच्चो और गरीबों में बाँट दें ......निश्चय ही रोग में आराम मिलेगा ।
28. अशोक के ताजे तीन पत्ते सुबह सुबह रोजाना बिना कुछ खाए चबाये जाएँ तो व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है ....इसके सेवन से रोग और चिन्ताओं का भी नाश होता है।
29. सदैव ध्यान दें भैया दूज (यम दीतिया) के दिन बहन के घर उसके हाथ से बना भोजन करने से, गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के घर/मंदिर से प्रसाद लेकर खाने से, बसंत पंचमी के दिन पत्नी के हाथ से बने पीले चावल खाने से एवं मात्र नवमी के दिन माँ के हाथ से बना भोजन करने से व्यक्ति निरोगी रहता है उसकी आयु में निसंदेह वृद्धि होती है।
30. स्वस्थ जीवन जीने के लिये रात्रि को अपने सिरहाने पानी किसी लोटे या गिलास में रख दें। सुबह उसे पी कर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन को उल्टा रखने से व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है।
31. बाजार से कपास के थोड़े से फूल खरीद लें। रविवार शाम 5 फूल, आधा गिलास पानी में साफ कर के भिगो दें। सोमवार को प्रात: उठ कर फूल को निकाल कर फेंक दें तथा बचे हुए पानी को पी जाएं। जिस पात्र में पानी पीएं, उसे कहीं पर भी उल्टा कर के रख दें। कुछ ही दिनों में आश्चर्यजनक स्वास्थ्य लाभ अनुभव करेंगे।
32. रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से पितृ दोष का नाश होता है, घर में शांति बनी रहती है, बुरे स्वप्न नहीं आते है और सभी प्रकार के रोगों से भी छुटकारा मिलता है ।
33. पूर्णिमा के दिन रात्रि में घर में खीर बनाएं। ठंडी होने पर उसका मंदिर में मां लक्ष्मी को भोग लगाएं एवं चन्द्रमा और अपने पितरों का मन ही मन स्मरण करें और कुछ खीर काले कुत्तों को दे दें। ऐसा वर्ष भर पूर्णिमा में करते रहने से घर में सुख शांति, निरोगिता एवं हर्ष और उल्लास का वातावरण बना रहता है धन की कभी भी कमी नहीं रहती है ।
34. घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन मिला कर चटाएं |
35. यदि घर में पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं एवं पीपल के पेड़ की लकड़ी को सिरहाने रखें।
36. जिस घर में स्त्रीवर्ग को निरन्तर स्वास्थ्य की पीड़ाएँ रहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धापूर्वक देखशल करने, संध्या के समय घी का दीपक जलाने से रोग पीड़ाएँ शीघ्र ही समाप्त होती है।
37. यदि घर में किसी की तबियत ज्यादा ख़राब लग रही है तो रविवार के दिन बूंदी के सवा किलो लड्डू किसी भी धार्मिक स्थान चड़ा कर उसका कम से कम 75% वहीँ पर प्रसाद के रूप में बांटे।
38. अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार दवा सेवन के पश्चात् भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उसार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को खिला दें। इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति अवश्य ही स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर इस अवधि में रोगी ठीक हो जाता है, तो भी इस प्रयोग को अवश्य पूरा करना चाहिए।
39. पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी दिन से शुरू करके 7 दिन तक करें ( अगर सोमवार से शुरू करें तो अति उत्तम होगा )। रोग से ग्रस्त व्यक्ति को जल्दी ही आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।
40. शुक्रवार रात को मुठ्ठी भर काले साबुत चने भिगोयें। शनिवार की शाम उन्हें छानकर काले कपड़े में एक कील और एक काले कोयले के टुकड़े के साथ बांध दें । फिर इस पोटली को रोगी के ऊपर से 7 बार वार कर किसी तालाब या कुएं में फेंक दें। ऐसा लगातार 3 शनिवार करें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा|
41. यदि कोई प्राणी कहीं देर तक बैठा हो और उसके हाथ या पैर सुन्न हो जाएँ तो जो अंग सुन्न हो गया हो, उस पर उंगली से 27 का अंक लिख दीजिये, उसका सुन्न अंग तुरंत ठीक हो जाएगा।
42. काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी बनाकर उसे अच्छी तरह सेंकें। गुड को तेल में मिश्रित करके जिस व्यक्ति के मरने की आशंका हो, उसके सिर पर से 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार को किसी भैंस को खिला दें।यह क्रिया करते समय ईश्वर से रोगी को शीघ्र स्वस्थ करने की प्रार्थना करते रहें।
43. गुड के गुलगुले सवाएं लेकर उसे 7 बार रोगी के सर से उतार कर मंगलवार या शनिवार व इतवार को चील-कौए को डाल दें, रोगी को तुरंत राहत मिलने लगती है।
आदेश......