यह साधना अत्यंत
प्रभावशाली साधना है और शीघ्र फल प्रदान करनेवाली साधना है आजमाने के दृष्टिकोन से
आप यह साधना ना करे क्यूकी एक बार अगर उच्चाटन हो गया तो फिर विपरीत क्रिया सम्पन्न
करने मे समय व्यर्थ जायेगा ,आप जिस कार्य के लिए उच्चाटन करना चाहते
है संकल्प लीजिये तो आपका कार्य 100% सिद्ध होगा,शत्रु ज्यादा तकलीफ दे रहे है तो अवश्य ही यह साधना शत्रुओके
नाम से संकल्प लेकर करे मजा आजायेगा आपको ये मेरा गारंटी है
साधना विधि-
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के रात्रि मे 9 बजे के बाद यह साधना
शुरू करनी है,काली हकीक माला ही साधना मे आवश्यक एकमेव सामग्री है,अमूक के जगह व्यक्ति विशेष
का नाम ले और साथ मे संकल्प भी लेना है,11 दीनो तक
11 माला जाप
से ही कार्य सिद्ध हो जाता है परंतु
शक्तिशाली
उच्चाटन हेतु आप 21 माला मंत्र जाप का भी चुनाव कर सकते हो,12
वे
दिन काले तिल-लौंग-काली मिर्च-चन्दन पावडर
से
कम से कम 108 मंत्र का आहुति हवन मे प्रदान करे,शिखा(चोटी) के कुछ बाल उखाड़कर जमीन के अंदर
बलि देने के भावना के साथ गाड दीजिये,साधना मे आसन काले रंग का हो दिशा दक्षिण होना चाहिये वस्त्र ज्यो आप गुरुसाधना मे धारण करते हो चल जायेगे,
मंत्र-
॥ ॐ ब्लूं स्लूं म्लूं क्ष्लूं कालरात्रि महाध्वांक्षी अमुक माशूच्चाटय आशूच्चाटय छिन्धी छिन्धी भिन्धी स्वाहा ह्रीं कामाक्षी क्रों ॥
12 दिन हवन की राख़ जल मे प्रवाहित कर दे और शिवाजी के नित्य 3 दिन
तक दर्शन शिवमंदिर जाकर प्रपट करे और साथ मे शिवजी पर जल चढ़ाये कुछ दक्षिणा भी समर्पित
करे,माला को संभाल के रखे अन्य किसी उच्चाटन
कार्य मे काम मे आयेगी........
विशेष
मंत्र और पूजन विधि
व्यापार संबंधी समस्या, ऋण मुक्ति एवं
अचल संपत्ति के लिए मां कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व
बताया जाता है. देखने में मां का स्वरूप विकराल है. परंतु मां सदैव ही शुभ फल
प्रदान करती हैं. इस दिन साधकगण अपने मन को सहस्रार चक्र में स्थित करते
हैं और मां की अनुकंपा से उन्हें ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियां
प्राप्त होती हैं. मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना एवं साधना द्वारा अकाल
मृत्यु, भूत-प्रेत बाधा, व्यापार, अग्निभय, शत्रुभय आदि से छुटकारा प्राप्त
होता है.
मां का सातवां रूप: कालरात्रि
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी
जाती है. इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल
बिखरे हुए हैं. गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है. इनके तीन नेत्र
हैं, ये तीनों नेत्र
ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल हैं,
इनसे विद्युत के समान
चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं. इनका वाहन गर्दभ है. ये ऊपर उठे हुए
दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं. दाहिनी तरफ का
नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का
कांटा तथा नीचे हाथ में खड्ग है.
मां का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है
लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. इसी कारण इनका नाम शुभकरीभी है, अत: इनसे किसी
प्रकार भक्तों को भयभीत होने
अथवा आतंकित
होने की आवश्यकता नहीं है.
सहस्त्रार चक्र की जागृति का शुभ दिन
कुंडलिनी जागरण के साधक
इस दिन सहस्त्रार चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं. वे गुरु कृपा से
प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर शास्त्रोक्त
फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं.
ध्यान मंत्र
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघोर्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं
संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
स्तोत्र मंत्र
हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
कवच
ॐ क्लीं में हदयंपातुपादौ श्रींकालरात्रि।
ललाटे सततंपातु दुष्टग्रहनिवारिणी॥
रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम
कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।
वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।
तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥
भगवती कालरात्रि का ध्यान, कवच, स्तोत्र का जाप
करने से भानु चक्र जाग्रत होता
है, इनकी कृपा से
अग्नि भय, आकाश भय, भूत पिशाच, स्मरण मात्र से
ही भाग जाते हैं, यह माता भक्तों
को अभय प्रदान करने वाली हैं.
श्री-सदगुरुजी-चरनार्पणमस्तू............